शुक्रवार, 25 मार्च, 2011 को संसद का बजट सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। अनेक वर्षों में यह सर्वाधिक छोटा सत्र रहा होगा।
जब राष्ट्रपति ने सांसदों को सत्र के लिए आहूत किया था तब कार्यक्रम इस प्रकार दर्शाया गया था:
सत्र की शुरुआत : 21 फरवरी, 2011
सत्रावसान : 21 अप्रैल, 2011
विभिन्न मंत्रालय की अनुदान मांगों पर संसद की स्थायी समितियों द्वारा विचार हेतु मध्यावकाश: 16 मार्च से 4 अप्रैल।
लेकिन मार्च की शुरुआत में ही इस आधार पर कि निर्वाचन आयोग ने चार प्रदेश विधान सभाओं और एक संघ शासित प्रदेश की विधायिका के चुनावों का कार्यक्रम घोषित कर दिया है, दो निर्णय किए गए : पहला, संसदीय स्थायी समितियों द्वारा अनुदान मांगों के परीक्षण की समाप्ति और दूसरा, बजट सत्र 25 मार्च को समाप्त होगा।
विभिन्न मंत्रालयों की बजट मांगों के गहन विश्लेषण को समाप्त करना संसद के लिए, बड़ा नुकसानदायक रहा।
मैं मानता हूं कि यदि सरकार और निर्वाचन आयोग ने जनवरी में ही अनौपचारिक चर्चा की होती तो इस स्थिति को टाला जा सकता था। बजट सत्र की तिथियां और प्रदेशों के चुनावी कार्यक्रम के बीच पर्याप्त समन्वय बैठाया जा सकता था।
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हाल ही में समाप्त हुए सत्र में भाजपा को अपनी भूमिका पर गर्व करने के पर्याप्त कारण हैं: दोनों सदनों में विपक्ष के नेताओं सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने शुरुआत में ही अविस्मरणीय भाषण दिए (लोकसभा: जेपीसी के गठन पर सरकारी प्रस्ताव) और (राज्य सभा: राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव); और इसकी समाप्ति पर (नोट के वोट की बहस : दोनों सदनों में)।
इन बहसों ने कुछ तनाव और गर्मी पैदा की लेकिन यह सरकार द्वारा पेंशन बिल को प्रस्तुत करने से रोकने के वामपंथी दलों के प्रयासों को असफल कर भाजपा को सरकार की सहायता करने से नहीं रोक सके। सदन के नेता प्रणवजी ने पार्टी के इस निर्णय के लिए सुषमाजी, यशवंत सिन्हा और मुझसे अपना आभार व्यक्त किया।
26 मार्च को ‘इण्डियन एक्सप्रेस‘ के प्रथम सम्पादकीय ‘एंगेजिंग अगेन‘ में सरकार और एनडीए को बधाई देते हुए इस घटना की इस तरह निरुपित किया है कि ‘यह इस बात का स्मरण कराता है कि संसद वह स्थान है जहां अर्थपूर्ण असहमति और सैध्दांतिक सहयोग होता है।‘
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संसद के अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होने की पूर्व संध्या पर, अधिकतर लोग राजनीति के बजाय अहमादाबाद में भारत और आस्ट्रेलिया के बीच खेले जा रहे वर्ल्ड कप क्वार्टर फाइनल में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे थे। इस मैच को अनेक लोग वास्तव में फाइनल के मैच से पहले का फाइनल मान रहे थे। हो सकता है अन्य लोग, भारत और पाकिस्तान के बीच 30 मार्च को मोहाली में खेले जाने वाले सेमीफाइनल को भी इस रुप में देखें। क्रिकेट के इस सीजन में, बजट सत्र में भाजपा के भूमिका की प्रशंसा करते समय, यदि मैंने भागलपुर के हमारे प्रगतिशील सांसद सैयद शाहनवाज हुसैन के भाषण की प्रशंसा नहीं की तो मैं एक बड़े अपराध का दोषी होऊंगा। देश में मुसलमानों की स्थिति सम्बंधी प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान उन्होंने भारत की क्रिकेट टीम में विशेष रुप से मुस्लिमों के योगदान का उल्लेख किया।
अपने भाषण में शाहनवाज ने कहा: ”इन दिनों वर्ल्ड कप क्रिकेट टूर्नामेंट चल रहा है। भारतीय टीम के ग्यारह खिलाड़ियों में जहीर खान, मुनाफ पटेल और यूसुफ पठान भी हैं। ग्यारह में से यह तीन 30.6 प्रतिशत बनते हैं। और यह उनकी प्रतिभा के आधार पर हैं न कि आरक्षण के चलते।” संयोगवश, यह तीनों खिलाड़ी गुजरात से हैं!
अपने सर्वोत्तम भाषण में शाहनवाज ने देश के अन्य स्थानों पर मुस्लिमों की समस्या की तुलना में अनेक आंकड़े देकर गुजरात में मुस्लिमों की समृध्दि का उल्लेख किया। गुजरात का उल्लेख करने पर जो उन्हें टोक रहे थे। उन्हें चुनौती देते हुए उन्होंने कहा ”यदि आपको गुजरात के बारे में मेरी बात पसंद नहीं है तो मैं अपने राज्य बिहार या मध्यप्रदेश अथवा अन्य एनडीए शासित प्रदेश का नाम ले सकता हूं और यकीन दिला सकता हूं कि अल्पसंख्यकों की चिंता कैसे अच्छे ढंग से की जाती है!”
जिन्होंने टीवी पर शाहनवाज को सुना, सभी ने उनके भाषण की तारीफ की। मुझे पता चला है कि जब शाहनवाज जुम्मे की नमाज अदा करने कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित मस्जिद पर गए तो इमाम ने सार्वजनिक रुप से उनके भाषण की तारीफ की और इसे ‘आंख खोलने देने वाला‘ बताया।
टेलपीस
संसदीय लोकतंत्र के स्थायित्व के अनेक नाजुक मुद्दों से भारत को अभी भी जूझना है। इसमें से एक वंशानुगत सत्ता से निकला है। स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारत ने 550 से ज्यादा रियासतों को समाप्त कर दिया था और कुछ वर्षो के पश्चात् पूर्व राजाओं के प्रिवीपर्स समाप्त कर समाजवादी होने की जोरदार घोषणाएं की गई। लेकिन राजनेताओं के ‘राजसी‘ परिवार पूरे देश में जोर-शोर से नए उत्साह से अपने को स्थापित कर रहे हैं। कभी एक समय पर पाकिस्तान के 20 सत्तारुढ़ परिवार भारत में चुटकुलों का मसाला होते थे क्योंकि वे लोकतंत्र का ढोंग करते थे। अब सभी राजनीतिक दलों में गांव स्तर से राज्य स्तर तक ‘सत्ताधारी‘ परिवार मिल जाएंगे। अधिकांश तथाकथित युवा सांसद और विधायक जिन्हें राजनैतिक दलों में युवा और ताजा चेहरे के रुप में प्रस्तुत किया जाता है वे सत्ता में बैठे लोगों के बेटे, दामाद, बेटियां, बहुयें, पोते, रिश्तेदार इत्यादि हैं…..
यह विशेष उल्लेखनीय है भाजपा, कम्युनिस्ट और वामपंथी दलों के सिवाय भारत में लगभग सभी अन्य दल पारिवारिक कम्पनी है। पिछले 12 वर्षों से सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष हैं और दिल्ली के सिंहासन के पीछे की असली शक्ति हैं, जन्म से इटली मूल की हैं; लोकसभा की स्पीकर मीरा कुमार और राज्यसभा के चेयरमैन हामिद अंसारी भारतीय विदेश सेवा के सेवानिवृत अधिकारी हैं; और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भारतीय आर्थिक सेवा के सेवानिवृत अधिकारी हैं! किसने कल्पना की होगी कि एक बिलियन से ज्यादा जनसंख्या वाले भारत में, 60 वर्षों के संसदीय लोकतंत्र के बाद भी जनता में से नेतृत्व का इतना अभाव होगा?
माधव गोडबोले
पूर्व गृहसचिव और सचिव न्याय,
भारत सरकार, आई.ए.एस. (सेवानिवृत्त)-1959-1996
(स्वंय सेवानिवृति ली)
की नवीनतम पुस्तक
इण्डियाज़ पार्लियामेण्टरी डेमोक्रेसी ऑन ट्रायल-प्रकाशित 2011-से साभार
लालकृष्ण आडवाणी
नई दिल्ली
27 मार्च, 2011